×

GTM Travel Stories's video: : Budha Kedar Temple complete History 2020

@यहां के निवासी केदारनाथ दर्शन को नहीं जाते : Budha Kedar Temple complete History 2020 बूढ़ाकेदार
Budhakedar Temple, chamoli Buda Kedar Trek is a pilgrimage site dedicated to “Lord Shiva” in Tehri Garhwal region of Uttarakhand. The Shivling present there is the biggest one in Northern India. It is located at the confluence of Dharam Ganga and BAL Ganga. Spot a variety of Himalayan birds here in the untouched environment of these hills. बुढाकेदार मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में बाल गंगा और धरम गंगा नदियों के संगम पर स्थित प्राचीन एवम् पवित्र , धार्मिक मंदिर है । “बुद्ध” (“पुराना”) केदार मंदिर और गंगा नदियों (स्थानीय तौर पर धर्म प्रयाग के रूप में जाना जाता है) के संगम पर एक मंदिर है | यह मंदिर नई टिहरी से मोटर मार्ग से लगभग 59 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | बुढाकेदार मंदिर भगवान शिव को समर्पित है | मंदिर के प्रवेश द्वार लकड़ी और पत्थर नक्काशी का एक शानदार संयोजन हैं । बूढ़ा केदार मंदिर में स्थित शिवलिंग की गहराई की नपाई अभी तक कोई नहीं कर पाया है परंतु ऊपरी ऊंचाई जमीन से लगभग 2 से 3 फीट की है इस , शिवलिंग पर भगवान शिव जी के अलावा कई अन्य आकृतियां भी बनी है जैसे कि माता पार्वती , भगवान गणेश , भगवान गणेश का वाहन मूषक , पांच पांडव , द्रोपदी , हनुमान और साथ ही मंदिर में भगवान केलापीर का निशान व माता दुर्गा की प्रतिमा भी रखी गई है | स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का निर्माण मानव द्वारा नहीं बल्कि इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की उत्पत्ति स्वयं हुई है , जो कि इस मंदिर को अपनी चमत्कारी शक्तियों के रूप में विशेष बनाती है | बूढ़ाकेदार मंदिर इस नाम का अर्थ कुछ इस प्रकार है “बुढा” अर्थात “वृद्ध” वही “केदार” भगवान शिव के नाम अनेक नामों में से एक है | बूढाकेदार मंदिर में भगवान शिव से अपने वृद्ध स्वरूप में विराजमान हैं | भगवान के वृद्ध स्वरुप के पीछे यह कारण है कि पांडवों पर अपने ही कुल वंशों की हत्या का कलंक लगा था | इस कारण से मुक्ति पाने के लिए महर्षि व्यास द्वारा पांडवों को शिव की उपासना करने का सुझाव दिया गया , पांडवों ने भगवान शिव की उपासना की परंतु शिवजी भी पांडवों से नाराज थे और वह पांडवों के समक्ष नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने व्रत नंदी बैल का रूप धारण कर लिया और हिमालय की घाटियों में अन्य जानवरों के बीच छुप गए परंतु भीम द्वारा शिव के इस रूप को पहचान लिया गया और जैसे ही भीम ने शिवजी जी के रूप को पकड़ना चाहा तो शिव का नंदी बैल रूप कई भागों में विभाजित हो गया | बूढ़ा केदार मंदिर में शिव के स्वरूप को पूजा जाता है इसलिए इस मंदिर को बूढ़ा केदार नाम दिया गया है | इतिहास : एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार , दुर्योधन ने इसी जगह पर तप किया था । पांडवों ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद भगवान शिव की खोज करने के निकले तब रास्ते में उनकी मुलाकात भृगु पर्वत पर ऋषि बालखिल्य से मुलाकात हुई । बालखिल्य ऋषि ने पांडवों का मार्गदर्शन किया और बताया की एक बूढ़ा आदमी संगम के पास ध्यान कर रहा है , तब पांडव उस जगह पहुँचे वो बूढ़ा आदमी अचानक शिव लिंग के पीछे गायब हो गया। बूढ़ाकेदार मंदिर इस शिवलिंग के ऊपर बनाया गया है । इस लिंग को उत्तरी भारत में सबसे बड़ा लिंग माना जाता है और इस पर अभी भी पांडवों के हाथ छाप है। बूढ़ाकेदार टिहरी जनपद का प्रसिद्ध धाम है। दो नदियों बालगंगा व धर्म गंगा के मध्य यह धाम स्थित है। यहां पर दोनों नदियों का संगम भी है। पूर्व में केदारनाथ पैदल यात्रा का यह मुख्य पड़ाव था उस समय बूढ़ाकेदार धाम के दर्शन किए बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती थी। बूढ़ाकेदारनाथ के नाम से ही इस गांव का नाम भी बूढ़ाकेदार पड़ा जो धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। बूढ़ाकेदारनाथ धाम की नींव आदि गुरू शंकराचार्य ने रखी थी। मंदिर के अंदर पत्थर की शिला है, जिसमें पांडवों की आकृतियां उभरी हैं। बताया जाता है कि गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए पांडव इस स्थान से स्वर्गारोहण के लिए निकलते थे तो यहां पर भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे, जिसके बाद इस स्थान का नाम बूढ़ाकेदार पड़ा। इस मंदिर के पुजारी नाथ जाति के लोग होते हैं। इसी स्थान से प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल सहस्रताल पहुंचा जाता है। कैसे पहुंचे: जिला मुख्यालय से यह धाम करीब 85 किमी दूर है। जिला मुख्यालय से यहां के लिए सीधी बस सेवा है। घनसाली से छोटे वाहनों से भी यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। बस व छोटे वाहन की सुविधा बूढ़ाकेदार तक है। यहां से कुछ ही दूरी पर बूढ़ाकेदार धाम है। उत्तरकाशी, धौंतरी होते हुए भी श्रद्धालु बूढाकेदार पहुंच सकते हैं। HISTORY OF BUDHA KEDAR TEMPLE : The Budha Kedar temple is located at the confluence of Bal Ganga and Dharam Ganga and has great religious importance. According to Hindu mythology during Mahabharata after the battle of Kurukshetra the Pandavas went to look out for Shiva to free themselves from their sins. During this journey, they encountered with Rishi Balkhily who directed them to meet an old man living in this confluence. However, when they appeared the old man who was supposed to be meditating there vanished and a huge Shiv linga appeared. Rishi Balkhily asked the Pandavas to embrace this Shiv linga to free themselves from their sins. They stamped their impressions on the Shiv linga and left making it the biggest Shiv Linga in Northern India.

117

42
GTM Travel Stories
Subscribers
2.9K
Total Post
40
Total Views
97.7K
Avg. Views
2.4K
View Profile
This video was published on 2020-04-02 19:36:56 GMT by @GTM-Travel-Stories on Youtube. GTM Travel Stories has total 2.9K subscribers on Youtube and has a total of 40 video.This video has received 117 Likes which are lower than the average likes that GTM Travel Stories gets . @GTM-Travel-Stories receives an average views of 2.4K per video on Youtube.This video has received 42 comments which are lower than the average comments that GTM Travel Stories gets . Overall the views for this video was lower than the average for the profile.GTM Travel Stories #BudhakedarTemple #Budakedar #kedarnath #Gangotri #Chamoli #Tehri #BudhaKedar #BoodhaKedar #Mahasartal #Mahasartaal #MahariniTaal has been used frequently in this Post.

Other post by @GTM Travel Stories