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Hindi Poetry's video: Angaare Aur Dhua By Shivmangal Singh Suman

@Angaare Aur Dhua By Shivmangal Singh Suman | अंगारे और धुआँ | शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
इतने पलाश क्यों फूट पड़े है एक साथ इनको समेटने को इतने आँचल भी तो चाहिए, ऐसी कतार लौ की दिन-रात जलेगी जो किस-किस की पुतली से क्या-क्या कहिए। क्या आग लग गई है पानी में डालों पर प्यासी मीनों की भीड़ लग गई है, नाहक इतनी भूबरि धरती ने उलची है फागुन के स्वर को भीड़ लग गई है। अवकाश कभी था इनकी कलियाँ चुन-चुन कर होली की चोली रसमय करने का सारे पहाड़ की जलन घोल अनजानी डगरों में बगरी पिचकारी भरने का। अब ऐसी दौड़ा-धूपी में खिलना बेमतलब है, इस तरह खुले वीरानों में मिलना बेमतलब है। अब चाहूँ भी तो क्या रुककर रस में मिल सकता हूँ? चलती गाड़ी से बिखरे- अंगारे गिन सकता हूँ। अब तो काफी हाऊस में रस की वर्षा होती है प्यालों के प्रतिबिंबों में पुलक अमर्षा होती है। टेबिल-टेबिल पर टेसू के दल पर दल खिलते हैं दिन भर के खोए क्षण क्षण भर डालों पर मिलते हैं। पत्ते अब भी झरते पर कलियाँ धुआँ हो गई हैं अंगारों की ग्रंथियाँ हवा में हवा हो गई हैं।

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