Ravi Talwar's video: Syama Prasad Mookerjee Birthday Jayanti July 6 Shorts
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Syama Prasad Mookerjee, जन्म- 6 जुलाई, 1901, कोलकाता; मृत्यु- 23 जून, 1953) एक महान् शिक्षाविद और चिन्तक होने के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे। उन्हें आज भी एक प्रखर राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त के रूप में याद किया जाता है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। संसद में उन्होंने सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा था। संसद में दिए अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि "राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।" भारतीय इतिहास में उनकी छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले ऐसे इंसान की है, जो अपनी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी अनेक भारतवासियों के आदर्श और पथप्रदर्शक हैं।
हिन्दू महासभा का नेतृत्व
राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रति आगाध श्रद्धा ने ही डॉ. मुखर्जी को राजनीति के समर में झोंक दिया। अंग्रेज़ों की 'फूट डालो व राज करो' की नीति ने 'मुस्लिम लीग' को स्थापित किया था। डॉ. मुखर्जी ने 'हिन्दू महासभा' का नेतृत्व ग्रहण कर इस नीति को ललकारा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उनके हिन्दू महासभा में शामिल होने का स्वागत किया, क्योंकि उनका मत था कि हिन्दू महासभा में मदन मोहन मालवीय जी के बाद किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। कांग्रेस यदि उनकी सलाह को मानती तो हिन्दू महासभा कांग्रेस की ताकत बनती तथा मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मनोकामना पूर्ण नहीं होती।
भारतीय जनसंघ की स्थापना
महात्मा गांधी की हत्या के बाद डॉ. मुखर्जी चाहते थे कि हिन्दू महासभा को केवल हिन्दुओं तक ही सीमित न रखा जाए अथवा यह जनता की सेवा के लिए एक गैर-राजनीतिक निकाय के रूप में ही कार्य न करे। वे 23 नवम्बर, 1948 को इस मुद्दे पर इससे अलग हो गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में सम्मिलित किया था। डॉ. मुखर्जी ने लियाकत अली ख़ान के साथ दिल्ली समझौते के मुद्दे पर 6 अप्रैल, 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। मुखर्जी जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में 'भारतीय जनसंघ' की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने। सन 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ ने संसद की तीन सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक सीट पर डॉ. मुखर्जी जीतकर आए।
भारत विभाजन के विरोधी
जिस समय अंग्रेज़ अधिकारियों और कांग्रेस के बीच देश की स्वतंत्रता के प्रश्न पर वार्ताएँ चल रही थीं और मुस्लिम लीग देश के विभाजन की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस विभाजन का बड़ा ही कड़ा विरोध किया।
संकल्प
उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री कहा जाता था। लेकिन डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। अगस्त, 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"
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