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T-Series Bhakti Sagar's video: : 17 Shraddha Tray Vibhag Yog Shrimad Bhagwad Geeta Saar MANOJ MISHRA

@श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 17, Shraddha Tray Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar, MANOJ MISHRA
श्रीमद्भगवद्गीता सार: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 17 | श्रद्धा त्रय विभाग योग | Shraddha Tray Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar | MANOJ MISHRA🙏 भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १७ में श्रद्धा त्रय विभाग योग की परिभाषा को व्यक्त करते हैं | प्रत्येक प्राणी स्वाभाविक रूप से श्रद्धा के साथ जन्म लेता है जो सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक तीन प्रकार की हो सकती है। पुरुषोत्तम भगवान अर्जुन से कहते हैं की हे अर्जुन प्रत्येक प्राणी स्वाभाविक रूप से श्रद्धा के साथ जन्म लेता है जो सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक तीन प्रकार की हो सकती है। सत्वगुण वाले स्वर्ग के देवताओं की पूजा करते हैं, रजोगुण वाले यक्षों तथा राक्षसों की पूजा करते हैं, तमोगुण वाले भूतों और प्रेतात्माओं की पूजा करते हैं। सत्वगुण की प्रकृति वाले लोग ऐसा भोजन पसंद करते हैं जिससे आयु, सद्गुणों, शक्ति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा संतोष में वृद्धि होती है। ऐसे खाद्य पदार्थ रसीले, सरस, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट होते हैं। अत्याधिक कड़वे, खट्टे, नमकीन, गर्म, तीखे, शुष्क तथा मिर्च युक्त दाहकारक व्यंजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय लगते हैं ऐसे भोज्य पदार्थों के सेवन से पीड़ा, दुख तथा रोग उत्पन्न होते हैं। अधिक पके हुए, बासी, सड़े हुए, प्रदूषित तथा अशुद्ध प्रकार के भोजन तमोगुणी व्यक्तियों के प्रिय भोजन हैं। धर्मशास्त्रों की आज्ञाओं के अनुसार पारितोषिक की अपेक्षा किए बिना और मन की दृढ़ता के साथ कर्त्तव्य समझते हुए किया गया यज्ञ सत्वगुणी प्रकृति का है।जो यज्ञ भौतिक लाभ अथवा आडम्बरपूर्ण उद्देश्य के साथ किया जाता है उसे रजोगुणी श्रेणी का माना जाता है। श्रद्धा विहीन होकर तथा धर्मग्रन्थों की आज्ञाओं के विपरीत किया गया यज्ञ जिसमें भोजन अर्पित न किया गया हो, मंत्रोच्चारण न किए गए हों तथा दान न दिया गया हो, ऐसे यज्ञ की प्रकृति तमोगुणी होती है। परमपिता परमात्मा, ब्राह्मणों, आध्यात्मिक गुरु, बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ सन्तजनों की पूजा यदि पवित्रता, सादगी, ब्रह्मचर्य तथा अहिंसा के पालन के साथ की जाती है तब इसे शरीर की तपस्या कहा जाता है।परमपिता परमात्मा, ब्राह्मणों, आध्यात्मिक गुरु, बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ सन्तजनों की पूजा यदि पवित्रता, सादगी, ब्रह्मचर्य तथा अहिंसा के पालन के साथ की जाती है तब इसे शरीर की तपस्या कहा जाता है। विचारों की शुद्धता, विनम्रता, मौन, आत्म-नियन्त्रण तथा उद्देश्य की निर्मलता इन सबको मन के तप के रूप में घोषित किया गया है। जब धर्मनिष्ठ व्यक्ति उत्कृष्ट श्रद्धा के साथ भौतिक पदार्थों की लालसा के बिना तीन प्रकार की तपस्याएँ करते हैं तब इन्हें सत्वगुणी तपस्याओं के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।जब किसी तपस्या को मान-सम्मान प्राप्त करने और आराधना कराने के लिए दंभपूर्वक सम्पन्न किया जाता है तब यह राजसी कहलाती है। इससे प्राप्त होने वाले लाभ अस्थायी तथा क्षणभंगुर होते हैं। वह तप जो ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जो भ्रमित विचारों वाले हैं तथा जिसमें स्वयं को यातना देना तथा दूसरों का अनिष्ट करना सम्मिलित हो, उसे तमोगुणी कहा जाता है।जो दान बिना प्रतिफल की कामना से यथोचित समय और स्थान में किसी सुपात्र को दिया जाता है वह सात्विक दान माना जाता है | लेकिन अनिच्छापूर्वक अथवा फल प्राप्त करने की अपेक्षा के साथ दिए गये दान को रजोगुणी कहा गया है। जो भी यज्ञकर्म या तप बिना श्रद्धा के किए जाते हैं वे 'असत्' कहलाते है। ये इस लोक और परलोक दोनों में व्यर्थ जाते हैं। भगवद् गीता:- भगवद् गीता एक महान ग्रन्थ है। युगों पूर्व लिखी यह रचना आज के धरातल पर भी सत्य साबित होती है। जो व्यक्ति नियमित गीता को पढ़ता या श्रवण करता है, उसका मन शांत बना रहता है। आज के कलयुग में भगवद् गीता पढ़ने से मनुष्य को अपनी समस्याओं का हल मिलता है आत्मिक शांति का अनुभव होता है। आज का मनुष्य जीवन की चिंताओं, समस्याओं, अनेक तरह के तनावों से घिरा हुआ है। यह ग्रन्थ भटके मनुष्यों को राह दिखाता है। मन को शांति मिलती है, काम, क्रोध, लोभ, मोह दूर होता है। गीता का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धीरे धीरे कामवासना, क्रोध, लालच और मोह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। सच और झूठ का ज्ञान होता है। तो आइये हम सभी इस अद्भुत ज्ञान को प्राप्त करें | भगवद् गीता के इस सार को श्रवण करने से आशा है हम सभी को अवश्य आत्मज्ञान और आत्मिक सुख की अनुभूति होगी | आशा है हमारा ये प्रयास आप सभी को लाभ प्रदान करेगा | Video Link: https://youtu.be/PKYXCWheI3E Bhagwad Geeta All Parts: https://www.youtube.com/playlist?list=PLyXHXSHxLqKwXaL5dFkzLOVU_9sYQIiUZ Geeta Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता सार: अध्याय 17, Shraddha Tray Vibhag Yog | Shrimad Bhagwad Geeta Saar, MANOJ MISHRA Vaachak: Manoj Mishra Music: Shardul Rathod Lyrics: Traditional Mixed & Mastered By: Dattatray Narvekar Album: Shrimad Bhagwad Geeta Saar - Adhyay 17 - Shraddha Tray Vibhag Yog Music Label: T-Series If You like the video don't forget to share with others & also share your views. Stay connected with us!!! ► Subscribe: http://www.youtube.com/tseriesbhakti ► Like us on Facebook: https://www.facebook.com/BhaktiSagarTseries/ ► Follow us on Twitter: https://twitter.com/tseriesbhakti

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This video was published on 2023-07-23 18:00:10 GMT by @T-Series-Bhakti-Sagar on Youtube. T-Series Bhakti Sagar has total 72M subscribers on Youtube and has a total of 28.9K video.This video has received 724 Likes which are lower than the average likes that T-Series Bhakti Sagar gets . @T-Series-Bhakti-Sagar receives an average views of 1.9M per video on Youtube.This video has received 74 comments which are lower than the average comments that T-Series Bhakti Sagar gets . Overall the views for this video was lower than the average for the profile.T-Series Bhakti Sagar #TSeriesBhaktiSagar #manojmishra #shrimadbhagwatkatha #geetasaar #geetasaarinhindi #bhagavadgita #bhagwadgeeta #bhagwadgita #gulshankumar #devotionalsongsvideo #devotionalvideo #bhaktisongs #bhaktibhajan #religious #spiritual has been used frequently in this Post.T-Series Bhakti Sagar official loves posting about entertainment.

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