Suryamit's video: UNESCO World Heritage Site- NALANDA UNIVERSITY S RUINS Bihar Suryamit worldheritage
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Archaeological Site of Nalanda Mahavihara at Nalanda, Bihar
UNESCO World Heritage Site
नालंदा एक महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह साइट बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, और पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
नालंदा 5 वीं और छठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के संरक्षण के तहत और बाद में कन्नौज के सम्राट हर्ष के अधीन विकसित हुए। गुप्त युग से विरासत में मिली उदार सांस्कृतिक परंपराओं के परिणामस्वरूप नौवीं शताब्दी तक विकास और समृद्धि बनी रही.
The Establishment Of Mahavira Was Formed By The Emperor Kumar Gupta In The Fifth Century A.D. From The 5th To 12th Century The Knowledge Of This Place Was In The State Of Climax. Due To International Reputation, Large Number Of Students Had Come To Study From China, Mongolia, Tibet, Korea And Other Asian Countries. The Level Of Teaching Was Extremely High Here. To Get An Education In Mahavihar One Was Tested By A Teacher. The Leading Centre Of Teaching Of Mahayana Buddhism Was Nalanda But Other Topics Of Education Were Also Featured Here. Finally At The End Of 12th Century Invader Bakhityar Khilji Demolished The Monastery, Killed The Monks And Burned The Valuable Library. At Present In View Of The Fact That This Place Was A Symbol Of Asian Unity And Strength, The Nalanda International University Is Being Established Nearby.
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
• नालंदा के पुस्तकालय में लगभग 90 लाख manuscript और हजारों books रखी गई थीं।
• नालंदा विश्वविद्यालय तक्षशिला के बाद दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता है।
• नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास की खोज चीन के ह्वेन त्सांग और इटिंग ने की थी। ये दोनों 7वीं सदी में भारत आए थे। उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय भी कहा।
• इस विश्वविद्यालय में मेरिट के आधार पर चयन होता था और मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। साथ ही उनका रहना और खाना भी पूरी तरह से फ्री था।
• इस विश्वविद्यालय में लगभग 10,000 छात्र और 2000 शिक्षक थे।
• इस विश्वविद्यालय में भारत ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया आदि देशों के छात्र पढ़ने आते थे।
• नालंदा में कई ऐसे सिक्के मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि इसकी स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में की थी।
• इस विश्वविद्यालय को बनाने का उद्देश्य ध्यान र अध्यात्म के लिए जगह बनाना था और कहा जाता है कि गौतम बुद्ध स्वयं यहां आए और कई बार ठहरे।
• नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय 9 मंजिलों का था और इसके तीन भाग थे: रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर। क्या आप जानते हैं कि इसमें 'धर्म गूंज' नाम की लाइब्रेरी भी थी।
• इस विश्वविद्यालय में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबंधु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन आदि अनेक विद्वानों ने अध्ययन किया था।
• उस समय यहां साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, खगोल विज्ञान, विज्ञान, युद्ध, इतिहास, गणित, वास्तुकार, भाषाविज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा आदि कई विषय पढ़ाए जाते थे।
• इस विश्वविद्यालय की सबसे खास बात यह थी कि कोई भी फैसला सभी की सहमति से लिया जाता था, यानी शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों ने भी अपनी राय दी. यानी यहां 'लोकतांत्रिक' व्यवस्था थी।
• नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष 1.5 लाख वर्ग फुट में मिले हैं। ऐसा माना जाता है कि यह इस विश्वविद्यालय का केवल 10% है।
यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का दूसरा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है जिसे इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था।
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