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@मानव को वेद कैसे मिला?
हिन्दू धर्म के जानकारी के लिए इन बाल्ग को जरुर पढ़े राजन पाण्डे https://wp.me/pb7T9I-1i गौतम भाई https://goutamrockstar.blogspot.com/ मिहिर राजपुरोहित https://vedic-sanatan.blogspot.com/ https://vedicsanatan.wordpress.com/ वेद नाम किम् ? वेद करता हैं १)” वेदयति इति वेदः”। वेद को ज्ञान कहा हैं वेदयति शब्द से स्वय पर ब्रह्म परमात्मा से ही बोधन सिद्ध होता हैं। २) वेदं इति पदम् ” विद् धातोः निष्पन्नः भवति। वेद पद विद् धातु से उत्पन्न हुआ हैं। ३) वेदसहित्यमेव भारतीय संस्कृतेः मुलं । वेद सहित्य से संस्कृत ही मूल हैं। ४) ऋषयः भगवता ज्ञात्वा छात्रान् प्रति बोधितवन्तः। ऋषियों भगवान के इस ज्ञान को जानकर शिष्यों केलिए बोधन किया। ५) अतः वेदानाम् ” श्रृति ” इति नामन्तरं प्रख्यातम्। इसलिए वेद का नामन्तर श्रृति हैं ६) ऋक् यजुस् साम अथर्वण इति चत्वारः वेदाः सन्ति। ऋग, यजु, साम ,अथर्व नाम के चार वेद हैं। ७) वेदेषु ब्राह्मण संहिता,आरण्यक उपनिषत् इति चत्वारः भागाः सन्ति। वेद में आरण्यक, संहिता ,ब्राह्मण , नाम के चार भाग हैं ८) वैदिकवाङ्गमयस्य सारभूतो भागः उपनिषत्। वेद वांग्मय मे के सार भूत भाग को उपनिषद कहते हैं ‌। ९)अत एवस्य वेदान्तः इति नामान्तरं प्रसिद्धम्। इसका ही वेदान्त जो अन्तिम ज्ञान हैं इसके अतिरिक्त कोई ज्ञान नहीं हैं यहां अन्तिम शब्द से वेद के अन्त होना कदापि सिद्ध नहीं होता हैं परन्तु यहां अन्त में जो ज्ञान पान हैं वो यही ब्रह्मविद्या हैं भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं । सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।१५:१५।। भगवद्गीता मैं सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें स्थित हूँ। मेरेसे ही स्मृति? ज्ञान और अपोहन (संशय आदि दोषोंका नाश) होता है। सम्पूर्ण वेदोंके द्वारा मैं ही जाननेयोग्य हूँ। वेदोंके तत्त्वका निर्णय करनेवाला और वेदोंको जाननेवाला भी मैं ही हूँ। १०) वेदस्य निर्णायात्मकं भागः अयमिति अन्तः पदस्य अर्थः आगे इसी ब्रह्म विद्या का ‘अयं इति अन्य: अर्थात यही अन्त हैं यही तत्पर्य गीत के श्लोक में वेदों के द्वारा जानने योग्य मैं ही हूं और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हुं इस पद से सिद्ध होता हैं। ११) उपनिषत् शब्दस्य निष्पत्तिः एवं भवति सद् धातोः प्राक् “उप” “नि” उपसर्गैः तथा क्विप् प्रत्ययः आगत्य उपनिषत् इति रूपः सिध्यति। उपनिषद शब्द का उत्पत्ति सद् धातु के साथ प्राक “उप ” नि उपसर्ग के साथ क्विप प्रत्यय के प्रयोग से उपनिषद के रुप सिद्ध होता हैं। १२) अनेक उपनिषदः सन्ति, परन्तु, तेषु ईश केन कठ प्रश्न मुण्डक माण्डुक्य तैत्तिरीय ऐतरेय छनदोग्य तथा बृहदारण्यक एते दश उपनिषदः प्रमुखाः। उपनिषदों में बहुत से हैं आज उपलब्ध १५० तक हैं लेकिन इनमें ईश केन कठ प्रश्न मुण्डक माण्डुक्य तैत्तिरीय ऐतरेय छनदोग्य तथा बृहदारण्यक नाम से दश संख्या का उपनिषद प्रसिद्ध हैं अब वेद के ज्ञान कैसे मिला इसके क्रम आदि के व्याख्या करेंगे। ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता। स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठामथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥ मुण्डक उपनिषद १:१ अथर्वणे यां प्रवदेत ब्रह्माथर्वा तं पुरोवाचाङ्गिरे ब्रह्मविद्याम्‌। स भारद्वाजाय सत्यवाहाय प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावराम्‌ ॥ मुण्डक १:२ यद्ब्रह्माश्रित्य वर्तते विद्याविद्ये महाभ्रमे । तदपह्रवसंसिद्वं तदहं परमाक्षरम् ॥ हिन्दी अनुवाद: समस्त देवताओं में पहले ब्रह्मा उत्पन्न हुआ। वह विश्व का रचयिता और त्रिभुवन का रक्षक था । उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्वा को समस्त विद्याओंकी आश्रयभूत ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया । १:१:१ अथर्वा को ब्रह्माने जिसका उपदेश किया था वह ब्रह्मविद्या पूर्वकालमें अथर्वा ने अङ्गी को सिखायी । अङ्गी ने उसे भरद्वाज के पुत्र सत्यवह से कहा तथा भरद्वाजपुत्र ( सत्यवह ) ने इस प्रकार श्रेष्ठ से कनिष्ठ को प्राप्त होती हुई वह विद्या अङ्गिरा से कही । १:१:२ अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातन। दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमॄग्युजःसाम लक्षणम् ।।१:२५।। इसके उपरान्त उस परमेश्वर ने यज्ञ की सिद्धि के लिए तीनों देवों -अग्नि, वायु और सूर्य को क्रमशः ब्रह्ममय और सनातन तीनों वेदों – ऋग्वेद , यजुर्वेद और सामवेद को दोहा अर्थात प्रकट किया १) प्रारम्भ में वेद तीन थे । कालान्तर में इन तीनों वेदों के अभिचार तथा अनुष्ठानपुरक कुछ मन्त्रों को पृथक करके अथर्व अथर्वणवेद नाम से चतुर्थ वेद अस्तित्व में आया। इस चतृर्थ वेद के सम्पादक महार्षि अंगिरा थे और वे ही कदाचित अभिचार विद्या का भी पुरोहित थे । अतः जहां अभिचार केलिए ‘अंगिरस’ शब्द का प्रयोग चल पड़ा वहां अथर्वणवेद का भी एक दुसरा नाम ‘अंगरिस’ वेद प्रचलित हो गया ‌। २) यहां एक उल्लेखनीय तथ्य यह हैं कि मूलतः वेद एक हैं। उस एक ही वेद का विषय -भेद से ऋग्यजुसाम तीन भागों में विभाजन हुआ हैं यही कारण हैं कि यहां मनु महाराज ने त्रयम एक वचनान्त रूप का प्रयोग किया हैं। ३) एक अन्य ध्यान देने योग्य यह भी‌ हैं का वेद का दोहन किया गया । इसका रचना नहीं की गयी। अनादि परब्रह्म परमेश्वर ने प्रलय काल में अग्नि वायु सुर्य इन देवों को इन्हें अधिष्ठा कहते हैं। अर्थात जैसे अग्नि के समस्त तत्वों के अधिष्ठा अग्नि देव हैं एवं वायु एवं सुर्यो कि समस्त तत्त्वों के अधिष्ठा वायुदेव तथा सुर्य देव हैं ।ये तथ्य निकल सकता हैं की परब्रह्म परमात्मा ने क्रमशः ऋग्यजुसाम लक्षणक वेदों को सुरक्षित रखने का कार्य इन्हीं देवों को सौंपा और पुनः सृष्टि के प्रारम्भ में उनके माध्यम से उसे प्रकट किया। इसी कारण वेद को अपौरुषेय कहा हैं।यहां आर्य समाजी के ऋषि था परमात्मा द्वारा हृदय में वेद प्रकट किया ऐसा मानना मुर्खाता हैं क्यों की यहां हृदय शब्द नहीं हैं न अग्नि वायु सुर्य वेद में ऋषि माना हैं ।ये सब वैदिक देवता हैं।

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Vedic Sanatan
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This video was published on 2019-09-17 22:49:08 GMT by @Vedic-Sanatan on Youtube. Vedic Sanatan has total 532 subscribers on Youtube and has a total of 96 video.This video has received 32 Likes which are higher than the average likes that Vedic Sanatan gets . @Vedic-Sanatan receives an average views of 323.4 per video on Youtube.This video has received 10 comments which are lower than the average comments that Vedic Sanatan gets . Overall the views for this video was lower than the average for the profile.

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