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@क्या फलित ज्योतिष ग़लत हैं?
ज्योतिष्य शास्त्र अध्याय १ १) ज्योतिष्य शास्त्र एक वृहद शास्त्र हैं २) समान्य भाषा ज्योतिष विद्या वह शास्त्र जिसके द्वारा आकाश में स्थित ग्रहों के गति का निर्धारण करना एवं उसके प्रतिमान दुरि इत्यादि का ग्रहण इस शास्त्र में किया जाता हैं ३) ग्रह नक्षत्र आदि का दुरि के अनुसार इसका अनुसार होता हैं जैसे धरती चंद्र का आकृषण करती हैं। उसके चलते लहर आदि उत्पन्न होता हैं। यहां गृरूत्व एक ऐसा बल हर जो वस्तु अपने से जो कमजोर वस्तु को अपने प्रभाव में लेता हैं। ४) जिस प्रकार चंद्र जल तत्त्व का आकृषण करता हैं वहीं जल तत्त्व हमारे अंदर भी हैं शरीर ही भू तत्त्व हैं। तो हमारे जल तत्त्व का आकृषित होने से चंद्र का प्रभाव हर प्राणि पड़ता हैं। ५) आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा अगर सब में जल तत्त्व से बना हैं तो सब मनुष्यों में एक समान प्रभाव होना चाहिए। ? ६) ऐसे होना हर समय सही नहीं हैं हर मनुष्य के शरीर का गुण निर्धारण तीन प्राय गुण से होता हैं पित्त ,वात कफ वास्तव में पित्त की उत्पत्ति अग्नि धवन क्रिया से होता हैं जब जल में अग्नि बड जाता हैं तो पित्त अधिक मना जायेगा या विपरीत में कम मान जायेगा। जिस में अग्नि तत्त्व कम हैं। उसमें गृरुत्व ज्यादा होता हैं वहीं विपरीत में कम हो जाता हैं। कफ भू और जल तत्त्व समावयी कारण से होता हैं। वैसे ही आकाश भूत वायु से संयोग होने पर वात बनता हैं। समस्त ग्रह का गृरूत्व अलग अलग हैं इन का ग्रहण उसके मान, तत्त्व तथा दूरि से होता हैं । इसलिए सब का प्रभाव अलग अलग होता हैं क्यों कि हमारे पित्त कफ वात इन गुणों के अधिकतम प्राय या इनके समावयी रूप से बनता इन्हे अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में body type ) कहते इनका वर्गीकरण Types A B C या mixed रूप में किया जाता हैं समान्य रूप इनमें भी किसी बिमारी का अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं इसका कारण भी यही सिद्धांत यही ज्योतिष विद्या में भी लागू होती हैं। ७) इसलिए ज्योतिष एक मुख्य प्रतिपादित विषय हैं यथा ब्रह्मांडे तथा पिण्डे वहीं विषय में विस्तार पुरवक वर्णण यजुर्वेद के पहले मंत्र में भी किया गया हैं उसके उपर अधिक चर्चा किसी अन्य लेख में करेंगे ८) वर्णण जिस शाखों में रस होता हैं जिससे देह के धातु कोश आदि पुष्टि होता हैं जिस घास पर गाया आदि चरते हैं उसके दुध से जो घी बनते हैं वहीं यज्ञ केलिए पवित्र मानते हैं क्यों हर वस्तु में रस होते हैं उसके रहित पुष्टि नहीं होते हैं। ९)ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है। १०) इस ज्योतिष्य शास्त्र को वेदांग में से मयूर शीख वा नग मणि के समान माना जाता हैं। ११) आचार्य सायण का कथन हैं ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठये यज्ञ का उचित काल का संसोधन करना हैं ये बात कहते हुवे आचार्य सायण अपने ऋग्वेद भूमिका में लिखते हैं की अगर ज्योतिष्य का ग्रहण न किया जाए तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाते हैं। १२) ज्योतिष शास्त्र से ही मनुष्य सब प्रकार के आकाशीय चमत्कार से परिचित होता हैं जैसे वह जनसामन्य को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं हवामान के बारे में सटीक विशेष जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का अत्यन्त महत्व है। १३) महर्षि वशिष्ठ का कथन है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यप्रदायक इस रहस्यमय विद्या का अच्छा तरह अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से पुराषार्थ एवं अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो इस भेद को जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख सम्पन्न होकर प्रसिद्धि को प्राप्त कर लेता हैं तथा मृत्यु के बाद स्वर्गलोक को में विचरण करते हैं। १४) ज्योतिष वास्तव में भविष्य का शास्त्र है। सरल भाषा के अनुसार इस शास्त्र का सही ज्ञान मनुष्य के धन अर्जित करने में प्रमुख सहायक माना जाता है क्योंकि ज्योतिष जब शुभ समय बताता है तो किसी भी कार्य में हाथ डालने पर सफलता की प्राप्ति होती है इसके विपरीत स्थिति होने पर व्यक्ति उस कार्य में हाथ नहीं डालना चाहिए। १५) ज्योतिष वास्ताव में भविष्य के संभवानवों का वर्णन करते हैं । इनके मुख्य आधार ज्योतिष गणना हैं इसके अनुसार अष्टमी व पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार-भाटे का समय निश्चित किया जाता है। वैज्ञानिक चन्द्र तिथियों व नक्षत्रों का प्रयोग अब कृषि में करने लगे हैं। ज्योतिष शास्त्र भविष्य में होने वाली हर दुर्घटनाओं वा विपाधवों के प्रति मनुष्य को सावधान करने सक्षम है। रोग निदान में भी ज्योतिष का मुख्य भूमिका हैं। १६)ज्योतिष ऐसा चित्ताकर्षक विज्ञान है, जो जीवन की अज्ञान पथ में मित्रों और शुभचिन्तकों की श्रृंखला खड़ी कर देता है। इतना ही नहीं इसके अध्ययन से व्यक्ति को धन, यश व प्रतिष्ठा मिलती है। इस शास्त्र से शूद्र व्यक्ति भी परम पूजनीय पद को प्राप्त कर जाता है। वृहदसंहिता में वराहमिहिर ने तो यहां तक कहा है कि यदि व्यक्ति अपवित्र, शूद्र या मलेच्छ हो अथवा यवन भी हो, तो इस शास्त्र के विधिवत् पुर्वक मानने से ऋषि के समान पूज्य, आदर व श्रद्धा का पात्र बन जाता है। १७) नित्य जीवन में हम देखते हैं कि जहां बड़े-बड़े चिकित्सक असफल हो जाते हैं, डॉक्टर थककर रोग वा रोगी से निराश हो जाते हैं वही मन्त्र-आशीर्वाद, प्रार्थनाएँ, टोटके व अनुष्ठान काम कर जाते हैं। इसके कारण इस शास्त्र का नाम मेडिकल आस्त्रोलजी पड़ा हैं

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Vedic Sanatan
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This video was published on 2020-02-19 10:10:19 GMT by @Vedic-Sanatan on Youtube. Vedic Sanatan has total 532 subscribers on Youtube and has a total of 96 video.This video has received 16 Likes which are lower than the average likes that Vedic Sanatan gets . @Vedic-Sanatan receives an average views of 323.4 per video on Youtube.This video has received 27 comments which are higher than the average comments that Vedic Sanatan gets . Overall the views for this video was lower than the average for the profile.

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